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कविता : तारीफ़










तारीफ़

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तारीफ़ अगर अपनी हो तो
खुशी का पहर है यारों
तारीफ़ अगर परायी हो तो
वो कोबरे का जहर है यारों
हमें कोई महान कहे तो
हम फूले नही समाते हैं 
हमें कोई गुलाब कह दे तो
मानो गुलाबजल में ही 
डूब जाते हैं,
पर, जब कोई हमारे सहकर्मी
के अच्छे कार्य की तारीफ़
हमारे सामने करता है,तो 
तुरन्त मुँह फूल जाता और
कभी घिघ्घी सी बंध जाती है
सुन परायी तारीफ़
बीपी हाई-लो हो जाता है
किसी के सिर में दर्द तो 
किसी का
हाजमा बिगड़ जाता है,
बस एक परायी 
तारीफ़ से वर्षों का
मौन भंग हो जाता है
मन में ईर्ष्या है या प्रेम
मिनटों में बाहर आता है
बस एक परायी तारीफ़
से आत्मा और धर्मात्मा का
असलीरूप प्रकट
हो जाता है,
वो जाते रहे वर्षों
कथा और सत्संगों में 
बताया गया कि बहुत
पहुंचे हुये हैं,
मिलना न होगा मुफ्त में
पहले भुगतान चैक/ड्राप्ट
से कराओ
फिर गुरूदेवजी के शुभदर्शन पाओ
बन जायेगें बिगड़े काम
गुरूदेव का ऐसा प्रताप
हो कितना कस्ट
गुरूदेव की मुस्कॉन 
कभी जाती नही है
सांसारी व्याधियाँ भी
इन्हें अब अाजमाती नही हैं
इनके भी गुरूजी इन्हें
अब प्रणाम करने लगें है
विदेश से भक्त लोग
इनसे आकर मिलने लगे हैं, 
फिर, सामने सिंघासन से वो
बोले मुस्कुरा के यही है सीख
बस सभी से प्रेम करो
हमने बोला कि
दूसरे गुरूजी के सत्संग
में ज्यादा दम है
उनके चेहरे पर तेज
और वाणी में काफी वजन है
लोग नाच उठते उनके भजनों पर
मोर तक आ जाते उनके सत्संग में
बस इतना था सुनना कि
बिन आग ही वो झुलस गये
और चिल्ला के, सौ गाली 
उन दूसरे गुरूजी को बकने वो लगे
हजारों आरोप उनके सिर पर
मढ़ दिये और गुस्से में तिलमिलाये
वहाँ से खिसक लिये, ये!
पहुंचे हुये लोग कहीं नही पहुंचे
गर, परायी तारीफ़ के पार न पहुंचे
इंसान ने दुनिया का सबकुछ
खाकर पचा डाला, बड़े से बड़ा
जोखिम उठा डाला
पर परायी तारीफ़
पचाने की हिम्मत न जुटा पाया
हम बदले भी तो मतलब के लिये
स्वंय को बदलने का बीड़ा न उठा पाया
प्रेम, प्रेम, प्रेम रटने की आडम्बरी
संकीर्णता रखी, पर
प्रेम को स्वंय में विराट होने नही दिया
सही और कम सही व्यक्ति में 
फर्क इतना ही रहा, कि
उसने अपने मित्र और पड़ोसी
को सपनों में भी गिरने नही दिया
ये सभी शब्द बस इतना ही
कहना चाहते हैं
कि परायी तारीफ़ करो तो
दिल खोल के करो
परायी तारीफ सुनो तो
दुआओं के पिटारे खोल के सुनो
एक दिन निखर जायेगी
शख्शियत आपकी 
दसों दिशाओं से खुशबू आयेगी
आपकी सच्ची तारीफ़ की
अब देती हूँ कलम को 
विराम दोस्तों !
आप सभी बेहतरीन शख्शियतों
को हमारा प्रणाम दोस्तों |



आकांक्षा सक्सेना
ब्लॉगर 'समाज और हम'



.....धन्यवाद....









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