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न्याय मिलने में देरी क्यों?










                       न्याय मिलने में देरी क्यों?

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अन्यायपीड़ितों को शीघ्र, सस्ता, सुलभ एवं निष्पक्ष न्याय दिलवाना ही सबसे बड़ा कर्म है व न्याय देना सबसे बड़ा धर्म है। न्याय मिलने में देरी, न्याय न मिलने के समान है। हिन्दुस्तान में लाखों लोग वर्षों से न्याय पाने के लिये कतार में लगे हैं लेकिन कतार खत्म होने का नाम नही ले रही है। लम्बित मुकदमों के मामलों में नेशनल जुडिशयरी डेटा ग्रिड के ताजा आंकड़े चिंतित करने वाले हैं। जहां करोड़ों मामले लम्बित हैं। उत्तर प्रदेश में 60लाख से अधिक मामले लम्बित हैं और इनमें से कुछ ऐसे मामले हैं जो सन् 1942 से लम्बित है उन्हें दायर करने वाले व उनकी पीढ़ियां भी आज मौजूद नहीं है। वहीं सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों के लिये 1048पदों में से 389पद और अधीनस्थ न्यायालयों के लिये स्वीकृत 22667पदों में से 598पद रिक्त पड़े हैं। जजों को काम के बोझ तले काम करना पड़ रहा है फिर भी लम्बित मामले घटने का नाम नहीं ले रहे। इस समस्या का मूल कारण हिन्दुस्तान की जनता की निष्क्रियता एवं गैरजिम्मेदारानापन है। जब से हिन्दुस्तान स्वतंत्र हुआ है। तब से लेकर अब तक की जनता में हिन्दुस्तान के अब तक शासक प्रधानमंत्री को ही अपना मतिदान किया है परंतु हिन्दुस्तान के सर्वोच्च न्यायिक जनजीवन व जीविकाहित में अब तक के किसी भी प्रधानमंत्री ने स्वेच्छा से अपना मतिदान हिन्दुस्तान के सर्वोच्च मुख्य न्यायाधीश जी के द्वारा हिन्दुस्तान के सर्वोच्च मुख्य सहायक न्यायाधीश अर्थात् हिन्दुस्तान के सर्वोच्च मुख्य विद्वान योग्य अधिवक्ता प्रस्तुतकार (पेशकार) को नही किया गया है। इसीलिए हिन्दुस्तान के समस्त न्यायाधीशों के सभी सहायक प्रस्तुतकार विधि स्नातक विद्वान योग्य अधिवक्ता ही नही है। इसीलिए हिन्दुस्तान की न्यायपालिका अनावश्यक करोड़ों मुकदमों के मामलों के बोझ तले दबी पड़ी है। इस बोझ को समाप्त करने के लिए हिन्दुस्तान के सर्वोच्च मुख्य न्यायाधीश ने हिन्दुस्तान के प्रधान मंत्री से अतिरिक्त न्यायधीशों की तो मांग की है परन्तु हिन्दुस्तान के सर्वोच्च मुख्य विद्वान योग्य अधिवक्ता प्रस्तुतकार की मांग अब तक न तो की है और न ही यह मांग उनसे अब तक पूरी करवायी है क्योंकि हिन्दुस्तान की समस्त जनता ने ही अपना मतिदान इलेक्शन वोटिंग मशीन का नाटो बटन दबाकर हिन्दुस्तान के सर्वोच्च मुख्य सहायक न्यायाधीश अर्थात् हिन्दुस्तान के सर्वोच्च मुख विद्वान योग्य अधिवक्ता प्रस्तुतकार को पाने के लिये हिन्दुस्तान के सर्वोच्च मुख्य न्यायाधीश के द्वारा हिन्दुस्तान के प्रधानमंत्री से अब तक न तो मांग की है और न ही यह मांग उनसे अब तक पूरी करवायी गयी है। इसीलिए हिन्दुस्तान के समस्त जनता के समस्त न्यायाधीशों को उनके सहायक विद्वान योग्य अधिवक्ता प्रस्तुतकार ही प्राप्त नही है। इसीलिए हिन्दुस्तान की अन्याय पीड़ित जनता को वर्तमान प्रस्तुतकार न्यायधीशों के द्वारा त्वरित,  सस्ता,  सुलभ एवं निष्पक्ष न्याय नही दिलवा पाते हैं। हिन्दुस्तान के वर्तमान समस्त प्रस्तुतकारों की यही बुनियादी अनियमिता ही न्याय दिलवाने में देरी का मूल कारण है। हिन्दुस्तान की जनता को अपने सर्वोच्च मुख्य बुनियादी स्वंय सहायताकारी, प्रतिभाशाली, परोपकारी तथा महिला एवं बालकल्याणकारी, संगठनकारी एवं विकासकारी विद्वान योग्य अधिवक्ता प्रस्तुतकारों की जरूरत है। हिन्दुस्तान की समस्त जागरूक जनता को अपने मतिदान के द्वारा न्याय पाने के लिए हिन्दुस्तान के सर्वोच्च मुख्य न्यायाधीश के द्वारा हिन्दुस्तान के प्रधानमंत्री से इन्हें पाने की मांग करनी चाहिए और यह मांग उनसे पूरी करवानी चाहिए जिससे की हिन्दुस्तान के समस्त न्यायाधीशों को अपने सहायक विद्वान योग्य अधिवक्ता प्रस्तुतकार प्राप्त हो सकें। जिनकी सहायता से न्यायाधीशों के द्वारा अन्यायपीड़ित व बेरोजगार जनता न्याययुक्त व रोजगारयुक्त हो सके तथा सबको अपनी खोई हुई शाख पुन:प्राप्त हो सके और सबका साथ व सबका विकास हो सके। हिन्दुस्तान की न्यायपालिका की बेहतरी के लिये यह पहल होनी चाहिए। हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार देवकाल की अन्यायपीड़ित जनता की मांग पर धर्मराज न्यायाधीश गणेशजी ने ब्रह्माजी से अपने विद्वान योग्य सहायक न्यायाधीश की मांग की थी और यह मांग उनसे पूरी करवायी थी और उन्हें सम्पूर्ण ब्रह्मांड के प्राणियों से अच्छे एवं बुरे कर्मों का लेखा-जोखा रखने वाले उनके सहायक न्यायाधीश कर्मराज श्री चित्रगुप्त जी की प्राप्ति हुई थी। द्वापर काल की अन्यायपीड़ित जनता की मांग पर प्राप्त कर्मराज श्री  कृष्ण चन्द्र बासुदेव जी ने धर्मराज युधिष्ठिर के भाई अर्जुन के द्वारा अश्वाथामा से उनकी मति दान में हासिल की थी। नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने कहा है कि कोई भी शासक स्वेच्छा से अपनी स्वतंत्रता जनता को देता नही है। स्वाधीन होने के लिये जनता को ही स्वंय इसे हासिल करना होता है।





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